मोरवा । मिथिलांचल का लोक पर्व 'सामा-चकेवा' की गीत देर रात तक प्रखंड क्षेत्र गांवों में गुंजायमान हो चूकी है। यह सिलसिला कार्तिक पूर्णिमा तक चलेगा। कार्तिक माह के पूर्णिमा तक चलने वाले इस पर्व में बहनों द्वारा अपने भाई के दीर्घायु एंव धन-धान्य से संपन्न बनाने की कामना की जाति है। इस पर्व में बहने मिट्टी निर्मित सामा-चकेवा, सत-भईयार, चुगला, वृन्दावन समेत दर्जनों पात्र को सजाकर घर से बाहर खुले स्थान में झुंड बनाकर खेलती हैं। साथ ही तरह-तरह के समा-गीत समा खेले मेलियो भैया, सामा ले गेलन चोर, समा-चकेवा सईद हे.. वृन्दावन में आगि.. आदि गीतों से प्रखंड रोज गुंजायमान हो रहा है। यह पर्व छठ पारन से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। पूर्णिमा की रात केले के थम के मंडप में भाई सामा-चकेवा की मूर्तियों को नदी या अपने आसपास के जलाशय में बहनों प्रवाह कर देते है। इस अवसर पर बहने समूह गान के साथ दीपक की रोशनी में इस पर्व को मनाते है।
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Thursday, November 18, 2010
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