पूसा। राष्ट्र के विकास में कृषि की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। कृषि से ही आर्थिक मजबूती प्रदान होती है लेकिन वर्तमान में कृषि पर आधारित किसान आर्थिक तंगी से तबाह हो दीपावली एवं छठ जैसे महान पर्व में भी उदासी छायी हुई है। मौसम एवं सरकार की योजनाओं से उदासीन अपने भाग्य पर आंसू बहा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पूसा की जमीन को कृषि वैज्ञानिक ने कृषि अनुसंधान के लिए उपयुक्त माना और वर्ष 1904 में कृषि संस्थान खुले। मगर हालत यह है कि कृषि विकास एवं अनुसंधान का जन्म स्थली पूसा के किसान भी कृषि से अच्छा नौकरी पसंद करते है। सुनील कुमार सुमन, उदय शंकर राय, गजेन्द्र सिंह, हिमांशु सिंह, संतोष कुमार जैसे दर्जनों किसान एवं प्रतिनिधि है जो किसान की हालत से चिंतित है। मौसम की बेरूखी ने विगत दो वर्षो से अपनी लागत पूंजी भी नहीं निकाल पाई है। प्रचार प्रसार का अभाव एवं सरकारी पदाधिकारियों के तानाशाही रवैये ने कृषि विकास की योजनाएं कुछ सीमित लोगों के बीच ही सीमट कर रह गयी है। वर्तमान में ही सुखाड़ के बाद प्रखंड के किसानों को कम दिन में तैयार होने वाली तोरी की प्रभेद वितरण हुआ किसानों ने धान के वैकल्पीक फसल मानते हुये बीज की बोआई का नतीजतन खाद-खल्ली कौन कहे जोताई के पैसे भी उपर नहीं होता देख किसान फसल की जोताई कर नये फसल लगा रहे हैं। रबी मौसम की बोआई का मुख्य समय नवंबर से प्रारंभ है। प्रतिनिधि से पदाधिकारी तक किसानों को ससमय सभी संसाधन उपलब्ध कराने की बात करते है लेकिन अभी किसानों को ढेर गुणा अधिक कीमत देकर खाद-खल्ली-बीज खरीद रहे हैं। भाषण देने वाले नेता एवं पदाधिकारी मौन है जैसे उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता यही हालत और व्यवस्था है किसानों के विकास का। दीपावली से पन्द्रह रोज पूर्व ही गांव में साफ-सफाई रंग-रोगन रंगीन लाइट, पटाखे की गूंज, बच्चों को नये कपड़े पहनाने की तैयारी जोड़-शोर से चलती थी। वही आज यह तैयारी गांव में कहीं-कहीं ही दिखाई पड़ रही है
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Tuesday, November 2, 2010
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