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Monday, November 8, 2010

सिद्ध को नई पहचान दिलाने की तैयारी

सुरेश उपाध्याय।। नई दिल्ली 
ईसा से करीब 3000 साल पुरानी माने जाने वाली भारतीय चिकित्सा पद्धति सिद्ध को आम जनता में पॉपुलर बनाने पर सरकार अब 
खास ध्यान देने जा रही है। तमिलनाडु में मशहूर इस पद्धति को अब पूरे देश और विदेश में लोकप्रिय बनाने की कोशिश होगी। इसी के तहत सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन सिद्ध (सीएसआरएस) नाम से अलग इकाई बनाई गई है। यही नहीं सिद्ध को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए इसे नैशनल रूरल हेल्थ मिशन में भी शामिल किया जाएगा।

पेटेंट की जंग से बचाने के लिए तो सरकार पहले ही इसके तमाम ज्ञात फॉर्म्युलों को ट्रडिशनल डिजिटल नॉलेज लाइब्रेरी में शामिल कर चुकी है, पर इसे जनता में पापुलर बनाने का काम अब भी बाकी है। इसी मकसद से सीएसआरएस में अब तक वैज्ञानिकों और प्रशासनिक स्टाफ समेत 153 पदों पर 280 लोगों को नियुक्त किया जा चुका है।

इससे पहले आयुर्वेद और सिद्ध में रिसर्च के लिए एक ही काउंसिल थी, जिसके कारण सिद्ध उपेक्षित सी हो गई थी। पर अब नई काउंसिल में आयुर्वेद और सिद्ध, दोनों के विशेषज्ञों को भेजा गया है।

माना जाता है कि सिद्ध पद्धति को खुद भगवान शिव ने शुरू किया था। पहला सिद्ध भी उन्हीं को कहा जाता है। आयुर्वेद की ही तरह इसमें भी प्राकृतिक चीजों से सैकड़ों दवाएं बनाई जाती हैं। तिब्बती चिकित्सा प्रणाली सोवा रिग्पा को आयुष विभाग के तहत भारतीय चिकित्सा पद्धति का दर्जा दिए जाने के बाद सरकार सिद्ध को देश के दूरदराज के इलाकों में भी पहुंचाना चाहती है।

यह काम नैशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत किया जाएगा। इसमें भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की दवाएं पिछड़े क्षेत्र की डिस्पेंसरियों में पहुंचाने के साथ ही वहां होम्योपैथी, आयुर्वेद, सिद्ध और सोवा रिग्पा के डॉक्टरों को भी तैनात करने की योजना है।

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