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Sunday, November 21, 2010

सरस मेले ने जीता दिल्ली का दिल

नई दिल्ली। भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले [आईआईटीएफ] में देश के ग्रामीण इलाकों से आए शिल्पकारों, दस्तकारों और अन्य कारीगरों के हस्तशिल्प उत्पादों ने दिल्ली वालों का दिल जीत लिया है। राजस्थान की जूतियां हों या फिर आंध्र प्रदेश की काष्ठकला का बेहतरीन नमूना अथवा केरल का नारियल का हलुवा या मसाले, ग्रामीण हस्तशिल्प उत्पादों की प्रदर्शनी 'सरस मेले' में सबका जलवा है।
प्रगति मैदान के हॉल संख्या सात में लगे सरस मेले के प्रति दिल्ली के लोगों में खासा आकर्षण दिखाई दे रहा है। लोग न केवल भारतीय हस्तशिल्प की बेहतरीन कारीगरी को निहार रहे हैं, बल्कि खरीदारी भी खूब कर रहे हैं। इस प्रदर्शनी में दस रुपये से लेकर पांच लाख रुपये तक का हस्तशिल्प का सजावटी सामान पेश किया गया है और लोग अपनी जेब के हिसाब से खरीदारी कर रहे हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय और काउंसिल फॉर एडवांस्मेंट ऑफ पीपल एक्शन एंड रूरल टेक्नोलाजी [कपार्ट] के सहयोग से लगाई गई इस प्रदर्शनी में देश के विभिन्न राज्यों से आए ग्रामीणों द्वारा 400 से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं। कपार्ट के अधिकारियों के अनुसार, सरस की खास बात यह है कि यहां ग्राहकों को ज्यादा मोलभाव करने की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि उत्पादों के लिए उचित दाम बताए जाते हैं।
सरस मेले में इस बार हालांकि जयपुरी रजाइयां नहीं हैं, पर जयपुरी जूतियां खूब बिक रही हैं। इनका दाम 180 से 250 रुपये तक है। जयपुर से आए प्रेमचंद ने कहा कि दिल्ली के लोग इस तरह की आकर्षक जूतियां खूब खरीद रहे हैं, क्योंकि ये काफी सस्ती हैं।
इसी तरह राजस्थान के आदिवासी इलाकों में घर-घर में पाया जाने वाला धनुष-बाण भी सरस का आकर्षण बना हुआ है। बांसवाड़ा से आई गौरी ने बताया कि ये साधारण धनुष बाण नहीं हैं, इनकी रेंज 90 मीटर तक है। ऐसे धनुष बाण का दाम 1,250 रुपये है। इनके बाण काफी नुकीले होते हैं। राजस्थान के आदिवासी शिकार के अलावा अपने घर में सुरक्षा के दृष्टि से भी ऐसे धनुष बाण रखते हैं।
बांस, टेराकोटा पत्थर, चमड़े के खिलौने और कशीदाकारी के सजावटी सामान के अलावा खाने पीने का सामान, मसाले, अचार आदि का स्वाद मेले में आए लोगों को खूब ले रहे हैं। यहां आंध्र प्रदेश का बेहतरीन काष्ठकला का नमूना भी पेश किया गया है। लकड़ी के एक टुकड़े से बनी राधाकृष्ण की मूर्ति का दाम जहां तीन लाख रुपए है, वहीं सरस्वती की मूर्ति ढाई लाख रुपए की है। इसी तरह भगवान गणेश की मूर्ति का दाम डेढ़ लाख रुपए है।
काष्ठकला के इन बेहतरीन नमूनों की खास बात यह है कि इनमें कोई जोड़ नहीं होता, यानी सिर्फ एक लकड़ी को ही अलग-अलग आकार दिया जाता है। तिरुपति से आए सोमनाथ ने बताया कि काष्ठकला के भी काफी कद्रदान हैं। सोमनाथ के मुताबिक, उनसे काफी निर्यातकों ने संपर्क किया है और मेले में उन्हेंच्अच्छे कारोबार की उम्मीद है।
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के राममूरत जहां अपने स्टाल में कृत्रिम जेवरात बेच रहे हैं, वहीं प्रह्लाद साफ्ट ट्वायज बेचने आए हैं। जय मां वैष्णों स्व सहायता समूह से संबद्ध इन दोनों का कहना है कि वे लगभग हर साल व्यापार मेले में भाग लेने आते हैं। प्रह्लाद के मुताबिक, ''हमारे साफ्ट ट्वाच् अच्छे बिक रहे हैं। इसकी वजह यह है कि किसी बड़ी कंपनी के खिलौनों के बजाय इनके दाम काफी कम है। हमारे साफ्ट ट्वाय का दाम 60 रुपए से 2,000 रुपये तक है। अब तक हम 2,000 रुपये के आधा दर्जन टैडी बीयर बेच चुके हैं।
वहीं लखनऊ के कल्लू मेले में टेराकोटा पत्थर से बने सजावटी सामान बेच रहे हैं। टेराकोटा से बने इन उत्पादों का दाम 30 रुपये से 700 रुपये तक है। कल्लू का कहना है कि मेले में उनका सारा सामान बिक जाता है, इस बार भी बिक्री अच्छी हो रही है।
केरल की हफीसा ने बताया कि दिल्ली के लोग खाने पीने के खासे शौकीन हैं। वह बताती हैं कि नारियल तेल से बना केरल का हलुवा 100 रुपये किलो है और लोग इसे काफी पसंद कर रहे हैं। हफीसा के अनुसार, केले की चिप्स और केरल के मसालों की भी च्च्छी मांग है।
त्रिपुरा के रविंद्र मजूमदार बांस से बने सजावटी उत्पाद बेच रहे हैं। मजूमदार का कहना है कि बांस से बने इन सजावटी सामान का दाम 20 रुपये से 300 रुपये तक है। टोकरी से लेकर बांस की पेंटिंग या डोर हैंगिंग कीच्अच्छी बिक्री हो रही है।
कपार्ट के अधिकारियों का कहना है कि सरस प्रदर्शनी का उद्देश्य ग्रामीणों और स्व. सहायता समूहों को अपने उत्पादों की बिक्री के लिए मंच उपलब्ध कराना है

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