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Sunday, November 21, 2010

लोक भाषा के प्रथम कवि थे विद्यापति

बेनीपट्टी (मधुबनी)। मिथिलांचल सर्वागीण विकास संस्थान के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय मिथिला विभूति पर्व समारोह का तीसरे दिन शुक्रवार को समापन सत्र का उद्घाटन करते हुए प्रवासी मैथिल (कोलकता) तथा मैथिली आंदोलन के पुरोधा तेजनारायण झा ने कहा कि मिथिला-विभूति पर्व के बहाने मिथिला व मैथिली के विकास के लिए हम छोटी-बड़ी योजनाएं बनाते हैं लेकिन पर्व के समापन के साथ ही हम उसे भूल जाते हैं। हमारी शिथिलता का ही परिणाम है कि महाकवि विद्यापति को जो मान-सम्मान मिलना चाहिए वह अब तक प्राप्त नहीं हो सका है। श्री झा ने कहा कि बंगाल में मां काली जिस रामकृष्ण परमहंस को एकबार दर्शन दिया आज विवेकानंद व बंगालियों के प्रयास से वहां रामकृष्ण परमहंस स्वयं भगवान बनकर पूजे जाते हैं। लेकिन मिथिलावासियों के बाबा विद्यापति जिनके यहां स्वयं भगवान शंकर उगना रूप में विद्यमान थे उस विद्यापति को हम मिथिलावासी भगवान नहीं बना सके। यह हमारी कमजोरी नहीं तो और क्या?
इस अवसर पर मुख्य अतिथि बहुभाषा विद् विनय कुमार झा ने कहा कि जिस समय विद्यापति का प्रार्दुभाव हुआ उस समय हमारा देश यवनों के शासन से त्रस्त था विद्यापति ने 'जय-जय भैरवि असुर भयाउनि' के माध्यम से उस समय यवनों के खिलाफ एकजुट हो संघर्ष करने का शंखनाद किया था। विद्यापति पहले कवि हैं जिन्होंने लोक भाषा में लिखा बाद में तुलसी ने इसी लीक पर चल कर लोकभाषा में अपनी रचना की।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के अध्यक्ष अमर नाथ झा ने अपने उद्बोधन में कहा कि 26 वर्षो से 'मिथिलांचल सर्वागीण विकास संस्थान' मिथिला के मान सम्मान की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ता रहा है। इस मिथिला विभूति पर्व के अवसर पर हम बचनबद्ध होते हैं कि जबतक मिथिला, मैथिली तथा मैथिलों की समस्याओं का निदान नहीं होगा हमारा संघर्ष निरंतर चलता रहेगा। इस अवसर पर संस्थान के उपाध्यक्ष भोगेन्द्र झा ने संस्थान के अबतक के क्रिया-कलापों की रूपरेखा रखी। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ. के. के. चौधरी, बीडीओ अरुण कुमार, सीओ अजय कुमार, नथुनी राम, शत्रुघ्न झा, भगवान झा, अखिलेश कुमार झा, सुनील मिश्र, विनोद कुमार झा, विनोद यादव, संतोष कुमार, प्रो. मोहन झा, सियाराम सदाय आदि ने विद्यापति की मूर्ति पर माल्यार्पण के साथ उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया। उद्घोषक जिला पार्षद कामेश्वर यादव थे।
कार्यक्रम का दूसरा सत्र सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम रहा जहां गायक-गायिकाओं के गायन से श्रोता रातभर झुमते रहे। खासकर मिथिला रत्न पंडित कुंजबिहारी मिश्र, सोनी कुमारी, प्रीति प्रिया, खुशबू, दीपा, रामचन्द्र आदि कलाकारों ने ऐसा समा बांधा कि सुबह होने का लोगों को पता ही नहीं चला। उद्घोषक के रूप में बौआजी की उद्घोषणा जहां लोगों को गुदगुदाती रही वहीं रमेश रंजन के निर्देशन में प्रस्तुत झिझिया, पमरिया, विवाह संस्कार, उपनयन संस्कार की मनोहारी प्रस्तुति लोगों को सर्वाधिक मनभावन लगी।

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