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Friday, November 5, 2010

मिट्टी के दीये व कुल्हिया के क्या कहने

दरभंगा। आधुनिकता की चकाचौंध में दीपावली पर मिट्टी के दीये व कुल्हिया की पूछ कम हुई है, पर पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। ज्योतिपर्व पर घरों को रौशन करने के लिए भले ही सभी लोग इसका उपयोग नहीं करते हों, लेकिन भगवान के समक्ष व आंगन में तुलसी चौरा के समक्ष जलाने के लिए खरीदते जरूर हैं। गुरुवार को स्थानीय मौलागंज के साथ ही सैदनगर, हसनचक आदि मोहल्लों में कुंभकारों के यहां दीये और कुल्हिया के ढेर लगे थे। ग्राहक खरीदने भी पहुंच रहे थे, लेकिन कम मात्रा में खरीद रहे थे। कुल्हिया व बड़ा दीया 60 रुपये से लेकर 80 रुपये सैकड़ा तथा छोटा दीया 40 रुपये सैकड़ा बिक रहा था। उल्लेखनीय है कि दीये और कुल्हिया की लौ पर कीट-पतंग अधिक तादाद में झुलस कर मरते हैं और बरसात के बाद इनका बढ़ा प्रकोप इससे कम होता है, लेकिन आधुनिकता की दौर में लोगों का रुझान इनकी तरफ से कम हुआ है और बिजली-बत्ती की तरफ बढ़ा है। मिट्टी के दीया व कुल्हिया बनाने वाले राजकुमार पंडित ने कहा कि लोगों का रुझान बिजली की तरफ होने से इन लोगों की पूछ कम हुई है। उनके पूर्वज दीपावली पर जितना दीया व कुल्हिया बेचते थे उतना भी वे नहीं बेच पा रहे, जबकि आबादी और घरों की संख्या काफी बढ़ गयी है। इधर, बाजार में रेडीमेड उल्का भी लोग खरीद रहे थे जिसे शुक्रवार को दीपावली पर जला कर मान्यता के अनुरूप पूर्वजों को लोग राह दिखायेंगे।

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