दरभंगा । विद्यापति सेवा संस्थान की ओर से आयोजित तीन दिवसीय मिथिला विभूति पर्व समारोह के दूसरे दिन पूर्वाह्न में आधुनिक मैथिली साहित्य के तीन महारथियों आचार्य सुरेन्द्र झा 'सुमन', आरसी प्रसाद सिंह एवं जनकवि बैद्यनाथ मिश्र 'यात्री' (बाबा नागार्जुन) की जन्म शतवार्षिकी पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित सेमिनार का आयोजन किया गया। संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डा. बुचरू पासवान की अध्यक्षता में एमएलएसएम कालेज परिसर में आयोजित इस संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए साहित्य अकादमी दिल्ली की मैथिली परामर्शदात्री समिति के सदस्य डा. अमरनाथ झा ने कहा कि सुमन-आरसी-यात्री ने मैथिली भाषा-साहित्य की ठोस आधार भूमि तैयार करने में महती भूमिका निभाई। तीनों महारथियों की रचनाधर्मिता को उन्होंने रेखांकित किया। डा. मुरलीधर झा के संयोजन व संचालन में हुई संगोष्ठी में 'आचार्य सुरेंद्र झा 'सुमन' आ हुनक दत्तवती महाकाव्य' विषय पर बोलते हुए डा. अमरकांत कुमर ने कहा कि वीर रस प्रधान यह ग्रंथ राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत है। आचार्य को उन्होंने समर्थ समालोचक, रस-सिद्ध कवि, दिशा युक्त राजेनता, पूजित प्राध्यापक व प्रखर संपादक बताया। वहीं डा. शांतिनाथ सिंह ठाकुर ने 'कविवर आरसी प्रसाद सिंहक व्यक्तित्व' विषय पर आलेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे मिथिला-मैथिली के सजग प्रहरी व राष्ट्रभक्ति से परिपूर्ण प्रेरणा पुंज थे। डा. ठाकुर ने मैथिली-हिन्दी साहित्य जगत में प्रभावी उपस्थिति रखने वाले कवि की कृतियों माटिक दीप, पूजाक फूल व सूर्यमुखी पर भी प्रकाश डाला। इधर, डा. कमलानंद झा ने यात्री साहित्य पर बोलते हुए कहा कि उनकी कविता में कबीर के व्यंग्य को विस्तार मिला है। यायावरी से विभिन्न क्षेत्रों व भाषा का अनुभव उन्हें अन्य कवियों से विशिष्ट बनाता है। यात्री की कविताएं मनुष्यता की खोज व उसकी संघर्ष यात्रा है जो आमजनों के हक में ताल ठोंक कर खड़ी है। जनकवि यात्री पर ही बोलते हुए डा. तीर्थनाथ मिश्र ने कहा कि अपनी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक रूढि़ व परंपरा की व्याख्या करते हुए समाज में सुलगती प्रगतिशील चेतना को मुखर किया। उन्होंने यात्री को भारतीय समाज के दुख-दैन्य का साक्षी बताया। चंद्रशेखर झा बूढ़ाभाई के आभार प्रदर्शन से संपन्न सेमिनार में नेपाल से पधारे रेवती रमण लाल ने भी अपने विचार रखे।
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Sunday, November 21, 2010
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