शिवाजीनगर। बारहवीं वित्त आयोग के करोड़ों खर्च कर पंचायत के जन प्रतिनिधियों ने सोलर सिस्टम की खरीदगी की, लेकिन यह काम ही नहीं करता है। पंचायतों में जगह-जगह लगाये गये इस सोलर सिस्टम की रोशनी धुंधली पड़ गयी है। प्रकाश पर्व दीपावली के अवसर पर लोगों की जुबान से अनायास निकल रही है-काश, सोलर सिस्टम काम करता तो हर रोज मनती दिवाली।
बता दें कि प्रखंड क्षेत्र में वर्ष 2001 से गांवों को रोशन करने की यह योजना चल रही है। बारहवें वित्त से प्रति वर्ष इस योजना के लिए प्रत्येक पंचायत को एक लाख 76 हजार 3 सौ रुपये मिलते हैं। इसमें पांच सिस्टम खरीदी जाती है। एक सिस्टम पर लगभग 33 हजार खर्च होते हैं। जबकि इस प्रखंड में 17 पंचायत हैं। इस दौरान योजना मद की राशि से पंचायतों में सैकड़ों सोलर सिस्टम खरीदे गये। लेकिन मात्र दस वर्षो में ही अधिकांश की हालत बेकार हो चुकी है। सोचनीय तो यह है कि वर्ष 2001 से 2006 तक जो भी सोलर सिस्टम लगे थे, अब उनका नामोनिशान नहीं दिखायी पड़ रहा है। और वर्ष 2006 से लगे सोलर सिस्टम भी रखरखाव के अभाव में दम तोड़ रहा है। हालत तो यह है कि कई के प्लेट खोल लिये गये तो कई की बैट्रियां चोरी चली गयी। इस बीच कई तो आज भी जन प्रतिनिधियों के दरवाजे की शोभा बढ़ा रही है। गरीब बस्ती में लगने वाले इन सोलर प्लेटों से अमीरों की दरवाजे रोशन होने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है। गरीबों के चौक-चौराहों से लेकर गांवों में आज भी अंधेरा कायम है। इस ओर बताया गया कि कमीशनखोरी के कारण अधिकांश सिस्टम खराब हो गये। जबकि तीन साल तक इसके जलने की गांरटी मिलती है। इस संबंध में पूछे जाने पर बीडीओ राजेन्द्र राम ने बताया कि पंचायतों को 12 वें वित्त की राशि आमसभा से पारित कर खर्च करने की स्वायत्ता है। फिलहाल, किस पंचायत में कितने सोलर सिस्टम लगे हैं, इसकी कोई रिपोर्ट प्रखंड कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए जल्द ही इस संबंध में रिपोर्ट देने के लिए पंचायत सचिवों को निर्देश दिया जाएगा।
बता दें कि प्रखंड क्षेत्र में वर्ष 2001 से गांवों को रोशन करने की यह योजना चल रही है। बारहवें वित्त से प्रति वर्ष इस योजना के लिए प्रत्येक पंचायत को एक लाख 76 हजार 3 सौ रुपये मिलते हैं। इसमें पांच सिस्टम खरीदी जाती है। एक सिस्टम पर लगभग 33 हजार खर्च होते हैं। जबकि इस प्रखंड में 17 पंचायत हैं। इस दौरान योजना मद की राशि से पंचायतों में सैकड़ों सोलर सिस्टम खरीदे गये। लेकिन मात्र दस वर्षो में ही अधिकांश की हालत बेकार हो चुकी है। सोचनीय तो यह है कि वर्ष 2001 से 2006 तक जो भी सोलर सिस्टम लगे थे, अब उनका नामोनिशान नहीं दिखायी पड़ रहा है। और वर्ष 2006 से लगे सोलर सिस्टम भी रखरखाव के अभाव में दम तोड़ रहा है। हालत तो यह है कि कई के प्लेट खोल लिये गये तो कई की बैट्रियां चोरी चली गयी। इस बीच कई तो आज भी जन प्रतिनिधियों के दरवाजे की शोभा बढ़ा रही है। गरीब बस्ती में लगने वाले इन सोलर प्लेटों से अमीरों की दरवाजे रोशन होने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है। गरीबों के चौक-चौराहों से लेकर गांवों में आज भी अंधेरा कायम है। इस ओर बताया गया कि कमीशनखोरी के कारण अधिकांश सिस्टम खराब हो गये। जबकि तीन साल तक इसके जलने की गांरटी मिलती है। इस संबंध में पूछे जाने पर बीडीओ राजेन्द्र राम ने बताया कि पंचायतों को 12 वें वित्त की राशि आमसभा से पारित कर खर्च करने की स्वायत्ता है। फिलहाल, किस पंचायत में कितने सोलर सिस्टम लगे हैं, इसकी कोई रिपोर्ट प्रखंड कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए जल्द ही इस संबंध में रिपोर्ट देने के लिए पंचायत सचिवों को निर्देश दिया जाएगा।
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