दरभंगा। आश्रि्वन पूर्णिमा पर शुक्रवार को जहां खिलखिलाती चांदनी संपूर्ण वातावरण को अपना उजास बांटती रही, वहीं इस दिन मनाये जाने वाले मिथिला के नव विवाहितों के पर्व कोजागरा पर मखाना मुस्कुराता हुआ सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा। नव विवाहितों के यहां सुबह से ही खासी चहल-पहल थी और शाम ढलते ही जैसे ही आसमान में चांद मुस्काया कोजागरा पर होने वाली पारंपरिक विधि शुरू हो गयी। महिलाओं ने आंगन को लीप कर रखा था और उस पर पिसे अरबा चावल से तैयार पिठार से अरिपन दिये गये थे। ससुराल से आया चुमावन का डाला वहां रखा गया था जिस पर पान-सुपारी, इलायची, लौंग, जनेऊ आदि को कलात्मक ढंग से सजा कर करीने से रखा गया था। किसी ने लौंग व जनेऊ को पेड़ की शक्ल देकर डाला को सजाया था तो किसी ने कटोरियों व अन्य पात्रों में उसे रखा था। मिठाइयां व फल भी थे। फिर वर को उनके साले साहब के साथ बैठाकर चुमावन किया गया और बड़े-बुजुर्गो ने मंत्र के साथ दूर्वाक्षत देकर उन्हें दीर्घायु होने का आशीष दिया। भगवती लक्ष्मी को घर में ले जाने की पारंपरिक रस्म हुई और वर ने कुल देवता को प्रणाम कर बड़े-बुजुर्गो के पांव छुये। इसके बाद आरंभ हो गया ग्रामीणों, सगे-संबंधियों व अतिथियों के बीच पान-मखान-बताशा का वितरण। झुंड के झुंड लोग आते गये और पान-मखान पाते गये। जिनके यहां पर्व मनाया गया उन्होंने लोगों को निमंत्रित कर भोजन भी कराया। इधर, बहुत से लोग रात्रि-जागरण करने में जुटे हैं। मान्यता है कि इस रात लक्ष्मी भ्रमण कर देखती हैं कि कौन जगा है। रात्रि जागरण के लिए देवर-भाभी के बीच पचीसी का खेल यहां होता है। सारी रात उनके परिहासों के बीच हंसी-ठिठोलियां गूंजती रहती हैं। लोगों ने कोजागरा पर चांदनी रात में आकाश से गिरने वाले शीत का आनंद भी उठाया। मान्यता है कि इस रात की चांदनी अमृत होती है जिसको लेकर खुले आकाश के नीचे बिना ढंके मखाने की खीर भी कई जगह बनायी गयी और उसे ग्रहण किया गया
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Saturday, October 23, 2010
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