हर वर्ष हो रही शुल्क में वृद्धि
सत्यदेव, झरिया : रोटी कमाने के लिये काम कर रहे हैं और इल्म की रोशनी से सराबोर भी होना चाहते हैं तो ऐसे लोगों के लिये यह सूचना स्तब्धकारी ही होगी कि प्राइवेट पंजीयन के लिये पहले से ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ेगी। जी हां प्राइवेट परीक्षा देकर डिग्री लेने वालों को अधिक शुल्क वहन करना होगा।
सभी को शिक्षा मिले इसके लिये सरकार पुरजोर प्रयास का दावा तो करती है पर सर्व सुलभता की दिशा में ऐसा कुछ नहीं हो पाता जिस पर आम इंसान रश्क कर सके। झारखण्ड अधिविद्य परिषद की ओर से कक्षा नवम में पंजीयन संबंधी शुल्क फिर बढ़ा दिया गया है। निजी विद्यालय संचालक, शिक्षाविद्, अभिभावक और परीक्षा देने को उत्सुक सभी स्तब्ध हैं। परिषद की ओर से स्वतंत्र छात्रों को पंजीयन के लिये 850 रुपये का शुल्क इस वर्ष तय किया गया है। जबकि पिछले वर्ष यह राशि 430 रुपये थी। नियमित छात्र के लिये 125 रुपये थी। स्वतंत्र व नियमित की परीक्षा में इतना अंतर गले नहीं उतर रहा। यदि आर्थिक रूप से आप समृद्ध नहीं हैं तो व्यक्तिगत छात्र के रूप में अपनी पढ़ाई जारी रखने के आपके सपने पर पानी फिर सकता है। एक ओर सर्व शिक्षा अभियान, कस्तूरबा विद्यालय जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। नि:शुल्क शिक्षण, वस्त्र, साइकिल, पुस्तकों का भी वितरण हो रहा है। वहीं पढ़ाई से दूर होने के बाद स्वतंत्र परीक्षार्थी के रूप में पुन: पढ़ाई करने की आशा रखने वालों पर शुल्क वृद्धि ने आफत ला दी है। जिसके पास धन है उसे चिंता नहीं पर उनका क्या होगा जो एक एक पैसे के लिये दिन रात एक करते हैं। साल दर साल पंजीयन शुल्क में बढोत्तरी को सरकार की शिक्षा नीति पर सवाल खड़े करती है। शिक्षाविद् राजेन्द्र सिंह ने कहा कि शिक्षा व स्वास्थ्य योजनाओं के सफल क्रियान्वन में सरकारी तंत्र कमजोर है। परिषद की प्राइवेट परीक्षाओं में सम्मिलित होने वालों में गरीब वर्ग की संख्या ज्यादा है। इस महंगाई में बढे़ दर पर पंजीयन कराना अभिभावकों के लिये परेशानी का सबब है। सरकार ध्यान नहीं देगी तो कई छात्र परीक्षा से वंचित हो सकते हैं। विवेकानंद विद्यालय की प्रधानाचार्या माधुरी गांगुली का कहना है कि उन्हें तो समझ में नहीं आ रहा कि अभिभावकों को बढ़े हुए शुल्क के बारे में कैसे बतायें। आश्चर्य की बात है कि सरकार ने इतना भी नहीं सोचा कि गरीब के बच्चों का पंजीयन कैसे होगा। मारवाड़ी विद्यालय के प्रधानाचार्य एके पाण्डेय कहते है कि परिषद् को शुल्क बढ़ोत्तरी पर पुनर्विचार करना चाहिये। बढ़ी हुई महंगायी में गरीब तबके के लोग भी मैट्रिक की परीक्षा दे लें ऐसा प्रयास सरकार करे। सरस्वती शिशु मंदिर झरिया के प्रधानाचार्य बिजेन्द्र नारायण दत्त कहते है कि सरकार को निचले तबके के लोगों को ध्यान में रखकर पंजीयन शुल्क निर्धारित करना चाहिये। एक तरफ सरकार नि:शुल्क शिक्षा और शिक्षा के अधिकार की बात करती है वही स्वतंत्र छात्रों के पंजीयन शुल्क में दो गुणे की वृद्घि समझ से परे है। शिक्षक अजय पांडेय का कहना है कि नियमित हो अथवा स्वतंत्र, छात्र तो सभी हैं। सभी एक ही परीक्षा देते है। फिर शुल्क निर्धारण में बड़ा अंतर तर्क संगत नहीं है। सरकार स्वतंत्र छात्रों के हितों की भी सुरक्षा के प्रति सजग हो।
..और यहां भी पल्ले से लगती है राशि : परिषद् द्वारा निर्धारित शुल्क के अलावा स्वतंत्र छात्रों को लगभग 500-600 रुपये अतिरिक्त लग जाते हैं। फार्म के 100 रुपये, जहाँ से फार्म भराया उनमें से कई में विद्यालय का व्यवस्था शुल्क 200 रुपया, आवासीय प्रमाण पत्र व जन्मतिथि शपथपत्र बनवाने में 200 रुपये का खर्चा आ जाता है। स्वतंत्र छात्रों को भी तीन माह तक विद्यालय में नियमित पढ़ाई करनी है। इसमें भी राशि खर्च होती है।
शुल्क का विवरण
वर्ष 2010 में निर्धारित शुल्क 850 रुपये
वर्ष 2009 में शुल्क 430 रुपये
वर्ष 2007 में शुल्क 375 रुपये
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