पटना,जागरण ब्यूरो। अब तक संपन्न दो चरण के मतदान के व्यवहार को देखते हुए कांग्रेस का चुनाव मैदान में उतरना असरदार प्रतीत हो रहा है। सभी सीटों पर उसके चुनाव लड़ने से सूबे की राजनीति की धुरी बनी पार्टियों को फिर से पुराने चुनाव समीकरण याद आने लगे हैं। तीसरे चरण तक के चुनाव प्रचार में जीत के लिए खुद को सशक्त मान रहे सत्ताधारी एनडीए व राजद-लोजपा गठबंधन ने अपने मुस्लिम व सवर्ण वोटों पर लहराये संकट को महसूस कर अपनी रणनीति में आवश्यक बदलाव कर डाला है।
मौजूदा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कूदने से दोनों गठबंधनों को दो दशकों से हाशिये पर रहीं अगड़ी जातियां याद आने लगी हैं। अपने चुनावी घोषणा पत्रों में सवर्णो को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने तथा उनकी बेहतरी के उपाय तलाशने के लिए आयोग का गठन करने की घोषणा कर पार्टियों ने उनके जख्मों को रफू करने की कोशिश की है। उन्हें पटियाने के लिए दिग्गज सवर्ण नेताओं को चुनाव प्रचार के मैदान में हेलीकाप्टर के जरिये उतारा गया है।
सूबे में कांग्रेस के लुंजपुंज हो जाने के चलते भाजपा अब तक आश्वस्त थी कि विकल्प न मिलने के चलते अधिकांश सवर्ण वोट उसकी झोली में ही गिरेंगे। सत्ता में भागीदारी से नजरअंदाज किये गये ब्राह्माण भी लाचारी में उसे ही वोट देंगे। मगर, कांग्रेस के उदय ने उसे खासी परेशानी में डाल रखा है। कांग्रेस के दबाव में ही जदयू व भाजपा को अपने चुनाव घोषणा पत्र में सवर्ण आयोग स्थापित करने की घोषणा को अंतिम समय में शामिल करना पड़ा। वैसे उन्हें अपने चुनाव प्रचार में अगड़ी जाति के वोटरों को यह हिसाब देना पड़ रहा है कि सत्ता के पांच वर्षो में उनके कल्याण के लिए दोनों दलों ने क्या किया? कांग्रेस के प्रति परंपरागत सवर्ण वोटरों के झुकाव को भांपते हुए ही सवर्णो के खिलाफ आग उगलने वाले राजद-लोजपा गठबंधन के नेताओं को भी उनके लिए दस प्रतिशत आरक्षण की घोषणा करनी पड़ी।
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