मधुबनी। आश्रि्वनी शुक्ल पूर्णिमा यानी शुक्रवार को लोकपर्व कोजागरा की धूम रही। ससुराल से आए नए कुर्ता, धोती, दोपटा के साथ माथे पर मोतियों से सजे धुनस वाले पाग धारण कर ऐसे वर जिनकी शादी के बाद कोजागरा पहली बार आता है अपने साले साहेब के साथ बैठ धान, दही, विभिन्न प्रकार के मेवा व मिठाईयों से भरे आकर्षक डाला से उनका चुमाओन किया गया। चुमाओन के बाद निमंत्रित ग्रामीणों व संबंधियों के बीच मखान व पान का वितरण किया गया, जो लगभग सारी रात चला।
शुक्रवार देर शाम तक नवविवाहित वरों के घर कन्या पक्ष के घरों से मखान, पान, मिठाईयां, फलों का भार एवं धान, दही, विभिन्न प्रकार के मिठाईयों मेवों, फलों व सजावटी सामानों से सजे आकर्षक डाला का आना होता रहा। इस अवसर पर अनेक जगह मैथिली गीत संगीत से भरपूर कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। जिसका आमंत्रित लोगों ने भरपूर आनंद उठाया। जानकारी हो कि कोजागरा के अवसर पर नवविवाहित वरों के घर पर कन्या पक्ष के घर से मखान, पान, मिठाई, दही आदि का भार आता है। वर पक्ष के यहां चुमाओन के लिए आंगन में पुरुष दशपात अरिपन व उसके उपरी भाग में कलश अरिपन बनाया जाता है। जिस पर लाल धान रखकर पुरहर पातिल में दीप जलाकर रख दिया जाता है, जहां पर ससुराल से आये पीढ़ी व चुमाओन डाला को अरिपन पर रखकर चुमाओन का विधि संपन्न होता है। डाला के ऊपर लाल धान व उसके ऊपर मखान, नारियल, केला, दही का छांछ, पान, सुपारी, मखान का माला, धुनेश (पाग), जनेऊ, इलायची, चानी का कौड़ी, पचीसी, मेवा व मिठाई आदि आकर्षक तरीके से सजा रहता है। इसके साथ ही इन सब सामग्रियों के अलावा, दही, मिठाई, केला, मखान, चूरा का भार सहित वर के लिए लाल धोती, गंजी, कुर्ता, रंग बिरंगी मोतियों से सजे पाग (धुनस), छाता, छड़ी आता है। चुमाओन के समय वर ससुराल से आए वस्त्र व पाग (धुनस) पहनकर साला के संग बैठते हैं। कोई अन्य पारिवारिक सदस्य उनके ऊपर छाता तान देता है और उसके बाद चुमाओन की रस्म अदा की जाती है। तत्पश्चात चांदी के कौड़ी वारी से हंसी ठिठोली के बीच साला के संग पचीसी खेलते हैं और उसके बाद गोसाउनिक घर जाकर हाथ में रखे पान, सुपारी व दुब भगवती को प्रणाम कर समर्पित करते हैं और उसके बाद अपने से बड़ों को प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं

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