विद्यापतिनगर। 19 नवंबर से लगातार तीन दिनों तक देवनगरी 'विद्यापति धाम' साहित्य साधना, श्रद्धा-भक्ति और प्रेम के आगोश में समा जायेगा। मैथिल कोकिल, भक्ति और श्रृंगार रस के अविस्मरणीय प्रतिमूर्ति महाकवि विद्यापति ठाकुर की महाप्रथाण भूमि विद्यापति धाम मे हर वर्ष की भांति मनाया जाने वाला तीन दिवसीय विद्यापति पर्व समारोह का रंगा-रंग उद्घाटन शुक्रवार को होने जा रहा है। इसकी सारी तैयारियां पूरी की जा चुकी है। ज्ञातव्य है कि मधुबनी जिले के बिस्फी ग्राम में पैदा हुये भक्त कवि विद्यापति समस्तीपुर जनपद के विद्यापतिनगर (तत्कालिन बाजिदपुर) में ही सदेह जल समाधि लिया था वे महादेव तथा जास्नवी माता गंगा के अनन्य भक्त थे। इसकी पुष्टि उनकी काव्य कृतियों में 'उगना रे मोर कतैय गेलाह तथा बड़ सुख सार पावल तुअ तीरे ..' सरीखे पदों से होती है। कवि के महा प्रथाण के पश्चात इस पावन धरती पर सैकड़ों वर्ष पूर्व अवतरित हुये स्वर्स्फत शिवलंग को लेकर विद्यापतिनगर, संपूर्ण मिथिलांचल के कण-कण में श्रद्धा, भक्ति, आस्था और विश्वास का प्रतीक बन ख्यात हो गया। भक्त और भगवान के इस अपूर्व मिलन स्थली धाम पर कार्तिक, सावन माह में दूर-दराज से आये भक्तों का मेला लगता है। वहीं सालों भर मन्नतें पूरी होने के उपलक्ष्य में मुण्डन, उपनयन एवं पाणि-ग्रहण संस्कार चलता रहता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा तट से लौटे कल्पवासियों का सैलाव यहां उमड़ पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि महाकवि ने इस धाम पर कार्तिक माह के त्रोदशी तिथि को ही महाप्रयाण ग्रहण किया था। इसी कारण प्रतिवर्ष जयंती समारोह त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होता आया है
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Thursday, November 18, 2010
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